
गैलीलियो गैलिली का जन्म 15 फरवरी 1564 मे इटली मे हुआ था। इनकी बचपन से ही विज्ञान अौर प्रकृति जगत मे होने वाली घटनाओं के विषय मे विशेष दिलचस्पी थी। इसी वजह से उन्होने प्रकृति की प्रत्येक घटना को वैज्ञानिक नजरिये से देखने की कोशिश की, जिससे आश्चर्यजनक परिणाम प्राप्त हुए।
एक समय जब गैलिली लगभग 17 वर्ष के थे और विद्या अध्ययन कर रहे थे, तो एक शाम वे अपने शहर पीसा के गिरिजाघर में प्रार्थना करने गए। तभी गिरिजाघर के एक दरबान ने जंजीर से लटके हुए लैंप को जलाया। जैसे ही उसने अपना हाथ हटाया वैसे ही लैंप जंजीर के साथ दाएँ बाएँ झूलने लगी। लैंप को झूलते देख गैलीलियो ने यह महसूस किया की लैंप के इधर-उधर डोलने(दौलन) का समय समान ही रहता है। चाहे डोलने की दूरी बड़ी हो या छोटी। उन दिनो घड़ी तो थी नहीं , लेकिन चिकित्सा विज्ञान के छात्र होने के कारण उन्हे पता था कि मनुष्य की नाड़ी की हर धड़कन मे समान समय लगता है। इसीलिए अपने प्रेक्षण की जाँच करने के लिए उन्होंने लेंप के दौलनो की निश्चित संख्या जानने के लिए अपनी नाड़ी की धड़कनो को गिनने का निश्चय किया। इस परीक्षण मे उनकी धारणा सत्य सिद्ध हुई। उन्होने पाया कि दौलन छोटा हो या बड़ा सबके लिए समान समय लगता है। इसी तथ्य के आधार पर उनके दिमाग मे एक यंत्र बनाने का विचार पैदा हुआ , जिसे आज सरल दौलक (simple pendulum)कहते हैं। इसी तथ्य के आधार पर उन्होने एक यंत्र का आविष्कार किया, जिसे "नाड़ी स्पंदन मापी(pulse meter) कहते हैं।
कई वर्षों बाद जब गैलीलियो वृद्ध और अंधे हो चले थे, तब उनके पुत्र विन्सेंजी ने इसी आधार पर दीवार घड़ियों के मॉडल बनाए। अाज भी इसी आविष्कार के आधार पर दीवार की पैंडुलम घड़ियाँ बनाई जाती हैं। गैलीलियो और पीसा की झुकी हुई मीनार की कहानी विज्ञान के इतिहास मे बहुत ही प्रसिद्ध घटना मानी जाती है। 23वर्ष की उम्र मे गैलीलियो जब पीसा विश्वविद्यालय मे गणित के प्राध्यापक नियुक्त हुए, तो उन्ही दिनो किसी धार्मिक पुस्तक मे पढ़ा कि यदि समान ऊँचाई से अलग-अलग भार की दो वस्तुएें एक ही साथ गिराईं जाएँ तो अधिक भार की वस्तु की तुलना मे जमीन पर पहले गिरेगी। वास्तव मे यह अरस्तु का कथन था। गैलीलियो को यह कथन कुछ अजीब लगा। वे पहले व्यक्ति थे जिन्होने इस कथन को गलत सिद्ध करके दिखाया।
एक परम्परागत कहानी के अनुसार गैलीलियो ने इस कथन को गलत सिद्ध करने के लिए पीसा की झुकी हुई 180फुट ऊँची मीनार को चुना। सन् 1590 मे एक दिन वे जीने से चढ़कर इस मीनार की सातवीं मंजिल के छज्जे पर चढ़ गए । अपने साथ वे धातु से बने दो गोले भी ले गए जिनमे एक का भार 100 पौंड का था और दूसरे का मात्र एक पौंड । गैलीलियो ने छज्जे से झुककर देखा कि उनके इस प्रयोग को देखने के लिए हजारों लोगों की भीड़ लगी है। इस भीड़ मे पीसा विश्वविद्यालय के प्रोफेसर , दार्शनिक और विद्यार्थी भी थे। उनमें से कुछ ऐसे रुढ़िवादी लोग भी थे , जो हजारो वर्षो से चली आ रही इस मान्यता का खंडन करने की जिद पर अड़े इस वैज्ञानिक को गालियाँ तक दे रहे थे। गैलीलियो ने दोनो गोलो को छज्जे की मुंडेर की बाहरी किनारे पर बड़ी सावधानी से संतुलित किया। फिर दोनो गोलो को एक साथ नीचे गिराया। भीड़ मे अधिकांश लोगो का विश्वास था कि गैलीलियो निश्चित रूप से सब के सामने बेवकूफ सिद्ध होंगे, लेकिन उस समय उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा, जब उनकी आँखो के समाने दोनो ही गोले एक साथ जमीन से आकर टकराए। इस प्रकार वर्षो से चली आ रही मान्यता देखते ही देखते गलत सिद्ध हो गई। इसी प्रकार गैलीलियो ने गुरुत्वाकर्षण के विषय मे बहुत कुछ जान लिया था और संभवतः इसी आधार पर वे इस तथ्य को सिद्ध कर सके।

गैलीलियो ने अपने प्रयोगो द्वारा कॉपरनीकस के विचारो की पुष्टि की। गैलीलियो ने कहा कि प्रथ्वी इस बृह्माण्ड का केन्द्र नहीं है। बल्कि प्रथ्वी और दूसरे सभी ग्रह सूर्य के चारो ओर घूमते हैं। सन् 1616 में जब उन्होने सूर्य की स्थिरता का सिद्धांत दिया, तो उन्हे सरकारी तौर पर चेतावनी दी गई कि वे इस विचार का प्रचार बंद कर दें। कट्टर कैथोलिक होने के कारण गैलीलियो ने सन् 1630 तक सार्वजनिक नहीं की। इसके बाद उन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक "डाइलॉग्स कनसर्निंग दि टू प्रिंसिपल सिस्टम आॅफ दि वल्ड" (Dialogues concerning the two principal systems of the world) प्रकाशित की। इस पुस्तक में उन्होने अपने विचारों का खुलकर प्रतिपादन किया था। इसके आधार पर उन पर अभियोग लगाया गया और दबाव डाला कि वह कथन झूठा मान लें तो उन्हे माफ किया जा सकता है। कहा जाता है कि जब वे न्यायालय मे खड़े हुए तो उन्होंने भूमि की तरफ देखा और फुसफुसाते हुए कहा कि "पृथ्वी ही सूर्य के चारों ओर घूमती है।" इसके लिए उस 70 साल के बूढ़े वैज्ञानिक को जेल काटनी पड़ी। जेल से मुक्त होने के बाद सन्1637 में वे अन्धे हो गए थे और जनवरी, 1642 में उनकी शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया। वे जीवन भर सत्य की खोज में लगे रहे और सत्य के लिए संघर्ष करते रहे, उनका नाम आज भी महान वैज्ञानिकों में गिना जाता है।
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